Monday, 22 August 2011

देखो आने वाली शाम

उसकी आहट से मन में पुलक है,
प्रतिदिन उसका रूप अलग है,
छोड़ के बैठा मैं सब काम,
देखो आने वाली शाम ...

भोर, दुपहरी के बाद वो आती
कुछ इठलाती, कुछ मुसकाती
हवा के झोंके वो संग लाती
मेरी प्यारी, निराली शाम...

सूरज का चेहरा तन जाता
विद्यालय से वापस मैं आता
बढ़ती गर्मी, तपता हर ग्राम
तब ठंडक पहुँचाती शाम...

बचपन बीता आई जवानी
जीवन की थी बदली कहानी
इंतज़ार में थी हैरानी
पर वो आती, संग शाम सुहानी...

जीवन का ये अंतिम चरण है
संग स्मृतियों के कुछ क्षण हैं
आज इन्हें जब वो लेकर आती
और भी न्यारी लगती शाम....

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