सूरज की मनमानी टोंके
ऊँचे स्वर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम
दुनिया की आंखों में अपना
यही गुनाह रहा
दो और दो को हर हालत में
हमने चार कहा
पाँच नहीं कह सके
तनी भोंहों के डर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम
पीछे खड़े प्रलोभन
आगे अपने खड़ा ज़मीर
लोग बाँधने चले
हवा के पाँवों में जंजीर
समझोता कुछ कर ना सके
अपने शायर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम
दुश्मन हो कर नहीं
प्रचारित करते ख़ुद को मित्र
ओढ़ दोगलेपन की चादर
रखते नहीं चरित्र
जैसे बाहर से दिखते
वैसे भीतर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम.
ऊँचे स्वर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम
दुनिया की आंखों में अपना
यही गुनाह रहा
दो और दो को हर हालत में
हमने चार कहा
पाँच नहीं कह सके
तनी भोंहों के डर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम
पीछे खड़े प्रलोभन
आगे अपने खड़ा ज़मीर
लोग बाँधने चले
हवा के पाँवों में जंजीर
समझोता कुछ कर ना सके
अपने शायर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम
दुश्मन हो कर नहीं
प्रचारित करते ख़ुद को मित्र
ओढ़ दोगलेपन की चादर
रखते नहीं चरित्र
जैसे बाहर से दिखते
वैसे भीतर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
खातिर तरसे हम.
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