Monday 22 August 2011

नव वर्ष

नव वर्ष की फ़िर से आहट हुई है
फ़िर कोई निश्चय लेने की चाहत हुई है
फ़िर से ख़ुद को खंगालने की कोशिश की
सोचा कुछ मिल जाए इस बार बदलने को

सोचा नव वर्ष में सदा सच बोलूँगा
फ़िर लगा की ऐसा निश्चय लिया तो
शायद पूरे वर्ष मुहँ ही नही खोलूँगा

सोचा छल कपट से दूर रहूँगा
लेकिन ऐसा निश्चय करना ही शायद
ख़ुद से छल करना है
छल के बगैर इस ज़माने में
अपना कहाँ काम चलना है

फ़िर कुछ और ख्याल आए
चलो इस बार सब ऐब छोड़ देते हैं
सदाचार की राह चलते हैं
समाज का कुछ ख्याल करते हैं
अपनी कुछ इमेज बदलते हैं

अचानक से सिर भारी होने लगा
बार बार करवटें बदलने लगा
शायद में किसी गहरे सपने से जगने लगा
हाँ सपना ही तो था ..सपना ही होगा
वरना कौन इतना सोचता है

आत्मग्लानी होने लगी
अपने स्वार्थ से अलग होने की इच्छा प्रबल होने लगी
उसी इक क्षण में मैंने प्रण लिया ख़ुद को बदलने का
नेक राह पर चलने का इक अच्छा इंसान बनने का

और शायद वही क्षण मेरे लिए नव वर्ष की शुरुवात थी
मैं स्वार्थ की चादर उतार चुका था
मेरा हैप्पी न्यू येअर हो चुका था

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